आप गईं तो खुशियों ने भी रास्ता मोड़ लिया,
सिर्फ दस्तक देती है,
सिर्फ दस्तक देती है,
छिप जाती है,
हमारी लाचारी पे हँस देती है,
मज़ाक उड़ती है,
और खफ़ा कर जाती है ।
बस आपकी यादों ने बिना इजाज़त के,
हमसे नाता जोड़ लिया,
और ग़म वो महबूबा बन गया है,
जो आँखों में नमी बन जाती है,
नींद को तबाह कर जाती है,
रूह-ओ-ज़हन को फना कर जाती है ।
रूह-ओ-ज़हन को फना कर जाती है ।
पर यह ऐसी महबूबा है जो हरदम साथ निभाती है,
रुला तो देती है हमको यह मगर,
आ-आकर हमसे वफ़ा कर जाती है ।